अक्सर नयी कार खरीदने का मतलब होता है पुरानी वाली को बेचना. सेकंड हैण्ड कार मार्केट अब एक बड़ी इंडस्ट्री बन चुकी है जहां कई बड़ी कंपनियां जगह ले चुकी हैं. आपको अपनी पुरानी कार बेचते हुए जो रीसेल कीमत मिलेगी वो कई बातों पर निर्भर होती है. ये केवल मोलभाव और सही कस्टमर और एजेंट के बारे में नहीं है बल्कि खुद कार पर भी कई बातें निर्भर होती है. कुछ ऐसी कार्स होती हैं जिनकी कीमत समय के साथ ज़्यादा तेज़ी से कम होती है वहीँ कुछ की कीमत ज़्यादा स्थिर होती है. कार के अलावे, उसके ओनरशिप और मेंटेनेंस पर भी काफी कुछ निर्भर करता है. लेकिन अगर आप अपनी कार की रीसेल वैल्यू पर ज़्यादा फर्क नहीं पड़ने देना चाहते तो आपको कुछ बातें दिमाग में रखनी चाहिए. पेश हैं वो 10 बातें जो आपको अपने कार की रीसेल वैल्यू कम करने से बचाएंगी.
चटख रंग से बचिए
पहली कार खरीदना कई लोगों के सपने सच होने जैसा होता है लेकिन अगर आप इसे बाद में बेचने के मकसद से ले रहे हैं तो सिल्वर/सफ़ेद/काले रंगों जैसे आम रंग ही चुनें. चटख रंग की गाड़ी लेना भले ही आपके मन में कौंध रहा हो, लेकिन इससे रीसेल वैल्यू पर बुरा प्रभाव पड़ता है. क्योंकि हर किसी को तो चमकीले पीले रंग की कार तो पसंद आती नहीं. अक्सर लोग आम दिखने वाले रंगों की कार्स लेते हैं. लेकिन कुछ कार्स होती हैं जिनका एक ख़ास रंग ज़्यादा कीमत लाता है जैसे Ford EcoSport का नारंगी रंग काफी पॉपुलर है. वैसे ही चटख लाल रंग की Ferrari सबसे अच्छी दिखती है. लेकिन बाकी कार्स में लोग सिल्वर, सफ़ेद, या काले रंग के शेड ही पसंद करते हैं.
ज़्यादा मालिक मतलब कम वैल्यू
ऑटो जगत में एक कहावत रही है की स्टीयरिंग पर जितने कम हाथ पड़ें, गाड़ी उतनी अच्छी चलेगी. ये काफी हद तक सही बात है क्योंकि जब कई लोग एक गाड़ी को काफी ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं तो गाड़ी के दुरूपयोग की संभावना बढ़ जाती है. इससे रीसेल वैल्यू कम होती है. ऐसी कार जिसके कई ओनर्स रहे हैं, उसकी रीसेल वैल्यू गिर जाती है. सिंगल ओनर कार्स की रीसेल वैल्यू अच्छी होती है क्योंकि उसके दुरूपयोग के आसार कम हो जाते हैं.
एक्सटेंडेड वारंटी कवर ना लेना
कई नए कस्टमर्स के लिए एक्सटेंडेड वारंटी लेना एक महंगा ऑप्शन होता है. लेकिन, एक्सटेंडेड वारंटी कार ओनर को ना सिर्फ मन की शान्ति देती है बल्कि इससे कार की रीसेल वैल्यू भी बढ़ जाती है. वारंटी कवर वाली सेकंड हैण्ड कार के कस्टमर्स मन की शान्ति के लिए थोड़े एक्स्ट्रा पैसे खर्च करने से नहीं हिचकते.
खराब आफ्टर-सेल्स सर्विस वाले ब्रांड
हो सकता है आपको अपनी कार से इतना प्रेम है की आप इसकी बुरी सर्विस क्वालिटी पर ध्यान नहीं देते है. लेकिन जिन कार्स की आफ्टर सेल्स सर्विस अच्छी नहीं होती, उसकी रीसेल वैल्यू भी कम होती है. एक उदाहरण है Fiat जिसकी कार्स अच्छी होती हैं लेकिन खराब आफ्टर सेल्स सर्विस के चलते उनकी रीसेल वैल्यू अच्छी नहीं होती. सेकंड हैण्ड कार खरीदने वाले ऐसी कार चाहते हैं जो ज़्यादा महंगी नहीं होती या जिनका मेंटेनेंस दिक्कतों भरा नहीं होता. इसलिए खराब सर्विस क्वालिटी वाले कार के लिए कोई भी ज़्यादा पैसे नहीं खर्च करना चाहता.
ब्रांड की छवि मायने रखती है
कार की रीसेल वैल्यू पर सीधा प्रभाव मार्केट में उसकी पॉपुलैरिटी डालती है. ज़्यादा बिकने वाली कार की रीसेल वैल्यू ज़्यादा होती है. इसलिए ऐसी गाड़ियाँ बेचने वाले लोग अपनी कार बेचते वक़्त ज़्यादा कीमत पाते हैं. कुछ आम उदाहरण हैं Maruti Suzuki Swift और Toyota Innova Crysta. लेकिन, ऐसी गाड़ियाँ हैं जो नए कार मार्केट में कभी भी ज़्यादा नहीं बिकीं. और कभी-कभी इन गाड़ियों का प्रोडक्शन काफी समय से बंद भी रहता है. ऐसी कार्स की रीसेल वैल्यू बेहद कम होती है.
मॉडिफिकेशन
अगर आपको लगता है की आप अपनी कार को मॉडिफाई करने वाले पैसे उसे बेचते वक़्त पा लेंगे तो आप गलत हैं. दुर्भाग की बात है की जो कार्स मॉडिफाई की गयी हैं उनकी रीसेल वैल्यू स्टॉक कार से कम होती है. इसका एक बड़ा कारण है की मॉडिफिकेशन आपको पसंद आ सकते हैं लेकिन शायद कस्टमर को ना पसंद आये. हाई-एंड आफ्टरमार्केट म्यूजिक सिस्टम, आफ्टरमार्केट अलॉय व्हील्स, और परफॉरमेंस अपग्रेड जैसी चीज़ें कार की रीसेल वैल्यू बढ़ाने के बजाये उसे कम करती हैं. इसलिए कार बेचने से पहले उसे स्टॉक हालत में ले जाएँ. दूसरा ऑप्शन है कार को ऐसे इंसान को बेचना जिसे इन मॉडिफिकेशन्स की आपके जितनी कद्र है.
ज़ंग लगी गाड़ी
ज़ंग कार का सबसे बड़ा दुश्मन होता है, साथ ही ज़ंग साफ़-साफ़ ये बताता है की कार को अच्छे से मेन्टेन नहीं किया गया है. इसलिए वो कार जिसमें थोड़ी सी भी ज़ंग लगी हो, उसकी रीसेल वैल्यू कम हो जाती है. इसलिए अगर आपकी कार में कुछ स्क्रैच लगे हुए हैं जो उसे ज़ंग से बचाने के लिए रीपेंट ज़रूर करा लें.
सर्विस हिस्ट्री ना होना
सर्विस हिस्ट्री वाली सेकंड हैण्ड कार्स की रीसेल वैल्यू ज़्यादा होती है. कस्टमर को लगता है की जो कार वो खरीद रहा है उसे अच्छे से रखा गया है और इसलिए उसे ज़्यादा पैसे देने में कोई दिक्कत नहीं आएगी. साथ ही सर्विस हिस्ट्री से कस्टमर को पता चलता है की कार के कौन से पार्ट्स बदले गए हैं और कौन से पार्ट्स की लाइफ खत्म हो रही है.
एक्सीडेंट वाली गाड़ी
देश में अस्त-व्यस्त ट्रैफिक सिस्टम के चलते कार को छोटे मोटे खरोच या डेंट से बचाना नामुमकिन होता है. लेकिन ऐसे छोटे रिपेयर के लिए बीमा क्लेम लेने से कस्टमर को लग सकता है की कार को एक्सीडेंट में हुए बड़े डैमेज के लिए रिपेयर कराया गया था. ये थोड़ी अजीब बात भी है क्योंकि ढेर सारे स्क्रैच और डेंट वाली कार की रीसेल वैल्यू थोड़ी कम होती है.
बीमा डालती है रीसेल वैल्यू पर असर
कार्स जिनका बीमा प्लान बेहतर होता है, उनकी रीसेल वैल्यू ज़्यादा होती है. कई कार ओनर सस्ते बीमा के साथ पैसे बचाने की कोशिश करते हैं. ये कार की रीसेल वैल्यू पर बुरा असर डालती है क्योंकि कस्टमर ऐसी कार नहीं खरीदना चाहेगा जिसका बीमा कवर उतना अच्छा ना हो. हाँ, कस्टमर्स कार ख़रीदने के बाद, कस्टमर अच्छा बीमा ले सकता है लेकिन उसके लिए अलग से पैसे खर्च करने होंगे.