इंडिया में बेचीं जाने वाली हर 4 में से 3 हैचबैक पेट्रोल पावर्ड होती है. अब सिर्फ 23 % सेडान और हैचबैक ग्राहक डीजल गाड़ियों को चुन रहे हैं. वहीँ 2013-14 में ये संख्या 50% तक थी. सिर्फ एसयूवी सेगमेंट ही ऐसा है — जहां 10 में से 7 ग्राहक डीजल चुनते हैं — जहां अभी भी डीजल का दबदबा है. चूंकि इंडिया की अधिकतर कार सेल्स हैचबैक और सेडान होती हैं, डीजल काफी तेज़ी से मार्केट से बाहर हो रहा है.
Honda के टॉप सेलिंग सेडान City के सेल्स का मात्र 20% डीजल है (पहले ये 60% हुआ करता था). Hyundai Creta जैसे एसयूवी के मामले में भी 30 % ग्राहक पेट्रोल चुन रहे हैं. बहुत सारे एसयूवी में ग्राहक डीजल सिर्फ इसलिए चुनते हैं क्योंकि वहाँ पेट्रोल उपलब्ध नहीं है. ये तेज़ी से बदलने वाला है क्योंकि काफी सारे कार निर्माता अपने एसयूवी पर भी पेट्रोल का विकल्प देने लगे हैं.
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इंडिया के दो बड़े कार निर्माता — Maruti Suzuki और Hyundai — के टॉप एग्जीक्यूटिव्स इस बात की पुष्टि करते हैं की ग्राहकों के बीच डीजल अपनी पकड़ खो रही है.
Maruti Suzuki के चेयरमैन RC Bhargava का कहना था की,
मुझे इसमें (डीजल) कुछ ज्यादा नहीं नज़र आता. मार्केट को डीजल पसंद नहीं है. मुझे उम्मीद है इसका शेयर घटेगा.
Hyundai’s के डायरेक्टर (सेल्स और मार्केटिंग) Rakesh Srivastava ने कहा की
डीजल अब अपनी पकड़ खो रहा है, और ये शिफ्ट काफी ज़बरदस्त है.
ऐसे बहुत सारे कारण हैं की कार ग्राहक डीजल के बदले पेट्रोल क्यों खरीद रहे हैं. सबसे बड़ा कारण है इकोनॉमिक्स. पेट्रोल और डीजल के बीच के दाम का अंतर अब 10 रूपए पर आ गया है. चूंकि डीजल कार्स पेट्रोल वाले से ज़्यादा महंगी होती हैं, ग्राहकों को शुरूआती खर्चे को उचित ठहराने के लिए डीजल कार्स को काफी लम्बी दूरी तक के लिए चलाना पड़ता है. और तो और इंडिया में 10 साल से ज्यादा पुरानी डीजल कार पर पाबंदी (रजिस्ट्रेशन पीरियड कम कर दिया है) लगा दी है. इसके चलते पुरानी गाड़ियों की रीसेल वैल्यू कम हो गयी है.
डीजल के भविष्य पर ये अनिश्चितता दूसरा बड़ा कारण है जो ग्राहकों को पेट्रोल की ओर ले जा रहा है. डीजल गाड़ियां उत्सर्जन घोटाले के चलते भी बदनाम हैं, और ऐसे ग्राहक जो पर्यावरण को लेकर जागरूक हैं, डीजल से मुंह मोड़ रहे हैं.