Tata Motors के अध्यक्ष Guenter Butschek ने हाइब्रिड कार्स पर सरकार की ओर से दी जाने वाली प्रस्तावित छूट का कड़ा विरोध किया है. हाल ही में अपने एक प्रस्ताव में भारी उद्योग मंत्रालय ने हाइब्रिड कार्स को “वस्तु एवं सेवा कर” के मामले में इलेक्ट्रिक कार्स के स्तर पर लाने की बात आगे रखी है जिन पर केवल 12 प्रतिशत ही कर लगता है. फिलहाल देश में हाइब्रिड कार्स पर 43 प्रतिशत कर लगता है. हाइब्रिड कार्स पर करों में भारी छूट की यह मांग कथित तौर पर Maruti Suzuki और Toyota द्वारा उठाई गई है जिनके कार्स के बेड़े में क्रमशः हाइब्रिड और फुल-हाइब्रिड कार्स मौजूद हैं.
वहीँ दूसरी ओर Mahindra और Tata Motors जैसे कार निर्माताओं ने इलेक्ट्रिक कार्स के ऊपर अपना पूरा ज़ोर दे रखा है. यह दोनों वाहन निर्माता भारत में इलेक्ट्रिक कार्स का उत्पादन करते हैं जो एक सरकारी कार्यक्रम का हिस्सा भी है. इसके अंतर्गत इलेक्ट्रिक कार्स की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए सरकारी महकमों में पेट्रोल/डीज़ल कार्स की जगह इलेक्ट्रिक कार्स के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जा रहा है. फिलहाल यहां पढ़िए इस मुद्दे पर Guenter Butschek ने क्या कहा है,
ये बात मेरी समझ के परे जा चुकी है. मैं सच कह रहा हूँ. हम इस मामले में एक सीधी सोच पकड़ केवल कार्स के इलेक्ट्रिफिकेशन की दिशा में बढ़ने की बजाये हमेशा दायें-बाएं ही क्यों जाते रहते हैं. MOVE समिट केवल कार्स के इलेक्ट्रिफिकेशन पर केन्द्रित थी. दुनिया के एक हिस्से-विशेष से आए प्रतिनिधियों के सिवाय उस मंच पर हाइब्रिड कार्स की बात किसने उठाई? वहां सभी प्रतिभागी केवल इलेक्ट्रिक वाहनों पर ही चर्चा कर रहे थे. यह तो बिल्कुल वैसा ही हुआ कि आप दो कदम आगे बढ़ें और तीन कदम पीछे हटें. मेरे पास शब्द नहीं हैं. में सही में उम्मीद करता हूँ की यह किसी की निजी सोच से अधिक कुछ नहीं और यह भी कि यह विषय अभी चर्चा के लिए खुला हुआ है नहीं तो हम सब मिल कर निजी क्षेत्र (जो कि पूँजी लगाने को तैयार खड़ा है) समेत एक बड़ी इंडस्ट्री को एक उहापोह की खतरनाक स्थिति में धकेल रहे हैं. ढेर सारी कंपनियां चार्जिंग स्टेशन और यहाँ तक कि बैटरी उत्पादन के लिए फक्ट्रियां लगाने के लिए तैयार खड़ी हैं. अब अचानक उभर कर सामने आई इस हाइब्रिड की चर्चा से इस किस्म के पूँजी निवेश की ज़रूरत ख़त्म हो जाती है.
अभी तक इस मामले में सरकार की नीतियों में कोई फेर-बदल नहीं किया गया है लेकिन यह चर्चा भारी-उद्योग विभाग के स्तर पर हो रही है. मैं इसका विरोध करता हूँ. सरकार के पास किफायती परिवहन मुहैय्या करवाने के लिए अन्तहीन बजट नहीं है. इसलिए 2022 तक CAFE नियमों के अनुपालन हेतु कोई न कोई जुगत लगानी ही होगी क्योंकि जब डीज़ल गाड़ियों में कटौती की जाएगी तब पेट्रोल इंजनों से उत्सर्जित किए जाने वाले खतरनाक-स्तर के CO2 उत्सर्जन की काट के किसी न किसी साधन की दरकार तो है ही है. अतीत में कभी भी इंडस्ट्री ने किसी भी ऐसी सरकारी छूट का फायदा नहीं उठाया है जिसकी तकनीकी तौर पर ज़रूरत पैदा हो चुकी है. सरकार से अपनी तकनीकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मदद या सब्सिडी की गुहार नैतिकता के पैमाने पर खरी नहीं उतरती.
ऊपर दिए गए वक्तव्य के आधार पर Mr. Butschek तीन अहम पहलुओं पर ज़ोर दे रहे हैं,
- सरकारी नीतियों को समय-समय पर नहीं बदला जाना चाहिए क्योंकि यह व्यापार को कठिन बनाता है. कार निर्माताओं ने पहले ही इलेक्ट्रिक वाहनों की तकनीक पर बहुत बड़ा पूंजीनिवेश कर छोड़ा है और सरकारी नीतियों से छेड़छाड़ कार निर्माताओं के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकता है.
- एक लॉबी विशेष के उकसावे पर सरकारी नीतियों से इस किस्म की छेड़-छाड़ भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के चलन और फैलाव की गति को बहुत धीमा कर सकता है. नतीजतन नीति में बदलाव सरकार की इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने की मुहिम की रफ़्तार को धीमा कर भारत को जीवाश्म इंधनों के कम उपयोग से भी रोकेंगी.
- किसी भी कार कंपनी को आम आदमी के पैसे से कारणों में छूट देना सरकार का गलत कदम होगा
हाइब्रिड वाहनों के पक्ष में खड़े लोगों ने इस तर्क को चुनौती देते हुए कहा है कि भारत अभी इलेक्ट्रिक कार्स को अपना पाने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है. इतने बड़े पैमाने पर पेट्रोल/डीज़ल कार्स से इलेक्ट्रिक कार्स पर जाने के लिए लगने वाला नेटवर्क अभी विकसित नहीं हुआ है और साथ ही बड़े स्तर पर इलेक्ट्रिक कार्स के उत्पादन के लिए भी पर्याप्त सुविधाएँ अभी पैदा नहीं हो पायीं हैं.
भारत के अधिकतर हिस्सों में इलेक्ट्रिक कार्स के लिए चार्जिंग की सुविधाएँ मौजूद नहीं हैं. इलेक्ट्रिक कार्स की कीमत पेट्रोल/डीज़ल/हाइब्रिड कार्स के मुकाबले बेहद ऊंचीं हैं. अगर हाइब्रिड कार्स पर टैक्स में छूट दी जाती है तो लोगों को अपनी पेट्रोल-डीजल कार्स छोड़ने में आसानी होगी.
आज के हालात यह हैं कि Maruti Ciaz जिसे माइल्ड-हाइब्रिड सिस्टम के साथ बेचा जा रहा है के ऊपर 43 प्रतिशत कर लगाया जाता है. अगर भारी उद्योग मंत्रालय के प्रस्ताव को मंज़ूरी मिल जाती है तो Maruti Ciaz तकरीबन 1 लाख रूपए तक सस्ती हो जाएगी.
Via MoneyControl